MP: बिना सरकारी फंड के सीहोर के हर स्कूल में बना स्मार्ट क्लास, जानें कैसे बदला पढ़ाई का तरीका

सीहोर जिले में कुल 1552 स्कूल हैं, जिनमें 1768 टीवी लग चुके हैं. इन स्कूलों के स्मार्ट क्लास बनाने में शिक्षकों और ग्रामीणों ने लगभग 4.25 करोड़ दान दिये हैं. यहां बच्चों को टीवी के जरिए सबक पढ़ाए जाते हैं. नई जानकारियां दी जा रही हैं.

भोपाल: 

टूटी-जर्जर इमारत, शिक्षकों की कमी… मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों से ऐसी तस्वीरें आती रहती हैं, लेकिन उसी मध्य प्रदेश में ग्रामीणों और शिक्षकों ने एक मिसाल कायम की है. सीहोर जिले के सभी स्कूलों में बिना सरकारी मदद के स्मार्ट क्लासेस (Smart Classes) बनाए गए हैं. स्थानीय लोगों और खुद शिक्षकों ने सहायता दी है.

NDTV की टीम अकावल्या में ऐसे ही एक स्कूल पहुंची. इस प्राथमिक स्कूल में 90 बच्चे और 3 शिक्षक हैं. गांववालों और शिक्षकों के सहयोग से यहां बच्चे स्मार्ट बन रहे हैं. इन्हें टीवी के जरिए सबक पढ़ाए जाते हैं. नई जानकारियां दी जा रही हैं. इनकी लाइब्रेरी की तस्वीर भी खास है. बच्चों की लंबाई के हिसाब से शेल्फ लगे हैं, ताकि बच्चे आसानी से किताबें निकाल सके.

यहां पढ़ाने वाली शिक्षिका प्रज्ञा पांडे कहती हैं, ‘बच्चे मौखिक रूप से हर विषय में बोलना सीख गये हैं. ये सबसे बड़ी उपलब्धि है. जब हमारी स्मार्ट क्लास बनी है तो उसे देखकर गायन, खेल के माध्यम से बच्चों में सीखने की गति बढ़ी है. स्मार्ट क्लास बनने से बच्चे ज्यादा स्मार्ट हो गये हैं.’

स्कूल में लगी है दानताओं की सूची
यहां से NDTV की टीम आगे सोयत हाई स्कूल की तरफ बढ़ी. स्कूल में घुसते ही, वो बोर्ड दिखा जिसमें ग्रामीणों, शिक्षकों यहां तक की वहां पदस्थ अधिकारियों की भी सूची थी. इन सभी लोगों की वजह से पहली से दसवीं तक का ये स्कूल स्मार्ट स्कूल में तब्दील हुआ है. 200 बच्चे यहां पढ़ते हैं. 5 रेगुलर टीचर हैं और 4 गेस्ट टीचर. यहां के कुछ बच्चों की कॉपी और लिखावट इतनी साफ है कि मानों टाइपिंग की गई हो.

क्या कहते हैं छात्र?
9वीं में पढ़नी वाली सोहानी पवार ने बताया, ‘जब पीरियड बर्बाद होता है तो टीवी से पढ़ सकते हैं.’ वहीं, माही यादव ने भी कहा कि टीवी आ गया है तो पढ़ाई नहीं रूक सकती. पीरियड बर्बाद नहीं हो सकता. जो विषय समझ में नहीं आता, उसे यू-ट्यूब पर सर्च करके पढ़ लेते हैं. दसवीं में पढ़ने वाले कार्तिक लोहवंशी ने कहा- ‘पढ़ाई पहली भी होती थी, लेकिन स्मार्ट टीवी आने से पढ़ाई का तरीका बेहतर हो गया है. हम कॉम्पीटिशन की तैयारी कर सकते हैं. मैं इंजीनियर बनना चाहता हूं.’

शिक्षकों के लिये भी अलग अनुभव
शिक्षकों के लिये भी ये अनुभव अलग है. स्कूल के प्रभारी प्राचार्य सुनेर सिंह पवार ने कहा, ‘स्मार्ट क्लास बनने से पढ़ने के स्तर में बदलाव आया है. नई चीजें सीखने को मिली हैं. हमारे स्कूल के शिक्षक, जितने लोग हैं सबने सहारा दिया है. उनकी मदद से एक-एक क्लास में टीवी लगाया गया है. मैं सबको धन्यवाद देना चाहता हूं.’ वहीं, विकासखंड के बीईओ भूपेश शर्मा ने कहा- ‘हमारे ब्लॉक में 320 स्कूल हैं. 83 स्कूलों में हर क्लास स्मार्ट क्लास हो गया है. ये सब शिक्षकों और दानदाताओं के योगदान से हुआ है.’

 

हायर सेंकडरी स्कूल तो पूरी तरह से बदल गया
बाहर लगे बोर्ड में मेधावी छात्रों की उपलब्धि थी. अंदर 11-12वीं के बच्चे स्मार्ट बोर्ड से पढ़ाई कर रहे थे. यहां 12वीं के बच्चों को रसायनशास्त्र यानी केमेस्ट्री पढ़ाने वाले शिक्षक संजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘जब हम केमिस्ट्री की बात करते थे, बच्चे बहुत सारी चीजें विजुएलाइज नहीं कर पाते थे. अब जब हम ओ लैब्स के माध्यम से डेमो कराते हैं, फिर लैब में प्रैक्टिकल करते हैं तो बच्चों को सब अच्छे से समझ आता है.’

कहानियों, किस्सों के जरिए होती है पढ़ाई
इसी स्कूल में प्राइमरी के बच्चे भी इन स्मार्ट क्लास से कहानियों, किस्सों के जरिये पढ़ाई कर रहे हैं. खेलों के जरिये सबक सीख रहे हैं. यहां पढ़ने वाली प्रतिभा उइके डॉक्टर बनना चाहती हैं. राघवेन्द्र यादव इंजीनियर बनना चाहते हैं. दोनों को लगता है अब केमिस्ट्री के प्रैक्टिल वो बेहतर तरीके से समझते हैं.

पूरे स्टाफ ने 2 लाख का किया कलेक्शन
इस विद्यालय के प्राचार्य शैलेन्द्र लोया ने कहा पूरे स्टाफ ने 2 लाख का कलेक्शन किया. पूरे क्लास को पहली से 12वीं तक को स्मार्ट क्लास में बदल रहे हैं. हमारा मिशन है ‘स्मार्ट स्कूल, स्मार्ट क्लास, स्मार्ट छात्र.’ बता दें कि सीहोर जिले में कुल 1552 स्कूल हैं, जिनमें 1768 टीवी लग चुके हैं. इन स्कूलों के स्मार्ट क्लास बनाने में शिक्षकों और ग्रामीणों ने लगभग 4.25 करोड़ दान दिये हैं.

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