ढप-ढोलक, हारमोनियम और मृदंग की धुन, गौड़िय संतों ने निकाली मुड़िया शोभायात्रा

ढप-ढोलक, हारमोनियम, मृदंग की धुन पर थिरकते गाते गौड़िय संतों ने बुधवार को कस्बे में परंपरागत मुड़िया शोभायात्रा निकाली। इसमें नाचते संत ऐसे प्रतीत हुए जैसे उन्हें साक्षात गुरू दर्शन हुए हों।

ढप-ढोलक, हारमोनियम, मृदंग की धुन पर थिरकते गाते गौड़िय संतों ने बुधवार को कस्बे में परंपरागत मुड़िया शोभायात्रा निकाली। इसमें नाचते संत ऐसे प्रतीत हुए जैसे उन्हें साक्षात गुरू दर्शन हुए हों। हरिनाम संकीर्तन के बीच गुरू भक्ति में लीन पहली मुड़िया राधा श्यामसुंदर मंदिर से निकली। मुड़िया शोभायात्रा के निकलते ही इन्द्रदेव ने भी कृपा कर दी और पुष्प वर्षा के साथ मेघ भी बरसे।

चकलेश्वर स्थित राधा-श्याम सुंदर मंदिर से करीब पांच सौ साल से चली आ रही गुरू-शिष्य परंपरा का निर्वहन करते हुए मुड़िया शोभायात्रा निकाली गई। बुधवार की सुबह 10 बजे महंत राम कृष्ण दास की निर्देशन में गुरू सनातन गोस्वामी के डोला के साथ भव्य शोभायात्रा का शुभारंभ हुआ। चकलेश्वर स्थित सनातन गोस्वामी की भजन कुटीर पर नमन करते हुए सिर मुड़ाये मुड़िया संत हरिनाम संकीर्तन के साथ नृत्य करते हुए श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बन गये।

राधा-श्याम सुंदर के महंत राम कृष्ण दास ने बताया कि पश्चिम बंगाल से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व आकर सनातन गोस्वामी पाद ने चैतन्य महाप्रभु के निर्देश पर भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थलियों को खोज की थी। प्रभु भक्ति में गोवर्धन में चक्लेश्वर सनातन गोस्वामी के गोलोकवास के उपरांत उनके अनुयायी भक्तों व ब्रजवासियों ने सिर मुड़वाकर नगर भ्रमण करते हुए मानसी गंगा की परिक्रमा की थी, तभी से इसका नाम मुड़िया पूर्णिमा पड़ गया। गुरु शिष्य परंपरा का निर्वहन करते हुए गत पांच सौ वर्षों से यह शोभायात्रा भक्ति और आस्था का जीवंत उदाहरण बनी हुई है।

श्रद्धा और भक्ति के संगम में लाखों ने लगाई गिरिराज परिक्रमा

गोवर्धन। आस्था, श्रद्धा और भक्ति के संगम में तलहटी पहुंचे लाखों भक्तों ने गिरिराज महाराज की परिक्रमा लगाई। मुड़िया पूर्णिमा मेला की पूर्व संध्या से रात और दिन में श्रद्धालुओं का अथाह जनसैलाब उमड़ पड़ा। गिरिराज महाराज की 21 किलोमीटर की परिक्रमा ही नहीं बल्कि आसपास के कई-कई किलोमीटर तक श्रद्धालु दिखाई दिये। भक्तों ने गिरिराज महाराज की शिला पर दूध चढ़ाकर मत्था टेक पाया। बता दें कि आषाढ़ मास की पूर्णिमा को लगने वाले प्राचीन मुड़िया पूर्णिमा मेले को उत्तर प्रदेश सरकार ने राजकीय मेले का दर्जा दिया है। सभी व्यवस्थाएं शासन स्तर से की जाती हैं।

50 किलोमीटर तक फैल जाता है मेला क्षेत्र 

गिरिराज महाराज की परिक्रमा के साथ यहां आने वाली भीड़ से मेला क्षेत्र पचास किलोमीटर तक पहुंच जाता है। गोवर्धन पहुंचने वाले सभी संपर्क मार्गों के साथ-साथ आसपास के गांव, कस्बा व शहर के बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन आदि पर भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है। गोवर्धन पहुंचने के लिए श्रद्धालु निजी वाहन, रेलवे, व बसों का साहरा लेते हैं। इस बार यूपी रोडवेज ने 1200 सौ बसों का संचालन व राजस्थान रोडवेज ने 25 अतिरिक्त बस लगाई थीं। इसके अलावा रेलवे विभाग ने स्पेशल ट्रेन  बुकिंग खिड़की आदि के इंतजाम किये। स्वयंसेवी संस्थाओं ने जगह-जगह भंडारे व प्याऊ के शिविर लगाये।

राधे-राधे की धुन पर लगाई परिक्रमा

गिरिराज महाराज की तलहटी में आयोजित मुड़िया पूर्णिमा मेला में पांच दिन तक श्रद्धा का सैलाब उमड़ा। हर कदम पर भक्तों के मुख से राधे-राधे का नाम निकला। कहीं मन्नत लिए हाथ में दूध का गिलास तो कहीं कष्टों को हरने के लिए फव्वारे के नीचे स्नान करते श्रद्धालु दिखाई दिए। वास्तव में तन, मन और धन तीनों ही श्रद्धालुओं ने बड़े मनोयोग से अपने आराध्य गिरिराज प्रभु को अर्पित किया

इस बार मुड़िया मेला में कम संख्या में आये श्रद्धालु

दो वर्ष के अंतराल के बाद आयोजित हुए मुड़िया मेले में श्रद्धालुओं की संख्या पिछले वर्षों की तुलना में कम रही है। रेलवे से आने वाले यात्रियों को ही देखा जाए तो वर्ष 2019 की तुलना में यह घट कर आधी रह गई है, जबकि रेलवे ने श्रद्धालुओं की संख्या में भारी इजाफे को ध्यान में रखते हुए व्यवस्थाओं को किया था। वर्ष 2020 और 21 में कोरोना के चलते मुड़िया मेले को स्थगित कर दिया गया था।

मथुरा रेलवे जंक्शन स्टेशन प्रबंधक पीएल मीना ने बताया इस वर्ष जंक्शन पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या काफी कम है। भीड़ को ध्यान में रख रेलवे ने व्यवस्थाएं भी की थीं, लेकिन वर्ष 2019 के मुकाबले रेल से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में काफी कमी रही, जबकि वर्ष 2020 व 21 में मुड़िया मेले का आयोजन नहीं हुआ था। इस कारण श्रद्धालुओं की अधिक संख्या का अनुमान लगाया जा रहा था।

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