नए सिद्धांत का दावा- बड़े ज्वालामुखी पृथ्वी पर दोबारा ला सकते हैं ‘हिमयुग’

धरती पर कई तरह की प्राकृतिक ताकतें हैं. इनमें से एक हैं बड़े ज्वालामुखी. अगर दुनिया के सारे ताकतवर और बड़े ज्वालामुखी एक साथ विस्फोट कर जाएं तो पूरी धरती का बढ़ता हुआ तापमान पांच सालों के लिए कम हो जाएगा. अब आप पूछेंगे कैसे? तो जवाब ये है कि ज्वालामुखी के फटने से निकलने वाले राख और धूल की वजह से धरती के वायुमंडल में सूरज की रोशनी रोकने वाले कण फैल जाएंगे. यानी आपको कई सालों तक गर्मी के मौसम से फुरसत मिल जाएगी.

ज्वालामुखी द्वारा तापमान में गिरावट लाने का बेहतरीन उदाहरण है फिलिपींस का माउंट पिनाटुबो (Mount Pinatubo). यह 1991 में भयानक तरीके से फटा था. जिसकी वजह से पूरे विश्व का तापमान कुछ समय के लिए 0.5 डिग्री सेल्सियस कम हो गया था. इसी तरह अगर इटली, इंडोनेशिया, आइसलैंड, फिलिपींस जैसे देशों में मौजूद सभी बड़े ज्वालामुखी फट पड़े तो धरती लगातार बढ़ रहे तापमान की समस्या से कुछ सालों के लिए निजात पा जाएगी. हालांकि इसके अलग तरह के नुकसान भी हो सकते हैं.

नई स्टडी के मुताबिक बढ़े हुए ग्रीनहाउस गैसों (Greenhouse Gases) की वजह से ज्वालामुखी से निकले राख और धूल के कण तेजी से ऊंचाई तक जाएंगे. तेजी से वायुमंडल में फैलेंगे. ज्यादा से ज्यादा सूरज की रोशनी को वापस अंतरिक्ष की तरफ भेजेंगे. जिसकी वजह से धरती पर तापमान गिरेगा. सूरज की रोशनी तो धरती तक पहुंचेगी लेकिन उसकी गर्मी कम हो जाएगी. अब आपको बताते हैं कि ज्वालामुखी ने पहले भी ऐसा योगदान दिया है.

कई बार वैज्ञानिकों को बर्फ की परतों के नीचे एक राख की काली परत या जमे हुए ज्वालामुखीय पत्थर दिख जाते हैं, जो ये बताते हैं कि धरती के शुरुआती दौर में ज्वालामुखी के विस्फोट हुआ करते थे. लेकिन आज इसका उलटा हो रहा है. धरती की जलवायु लगातार ज्वालामुखियों पर असर डाल रही है. इस स्टडी को करने वाले कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के जियोफिजिसिस्ट थॉमस ऑब्रे ने कहा कि IPCC के मुताबिक धरती का तापमान 2100 तक 6 डिग्री सेल्सियस और बढ़ने की आशंका है.

थॉमस कहते हैं कि ऐसी स्थिति में ज्वालामुखियों का योगदान बढ़ जाएगा. थॉमस और उनकी टीम ने एक कंप्यूटर सिमुलेशन बनाया कि अगर धरती के सारे मध्यम और बड़े आकार के ज्वालामुखी साल 2100 के बाद फट पड़े तो क्या होगा. उन्होंने बताया कि साल भर में एक दो ज्वालामुखी इतनी जोर से फटते हैं कि उनसे निकलने वाली राख और धूल का गुबार ट्रोपोस्फेयर तक पहुंच जाता है. अगर सारे ज्वालामुखी एक साथ फटेंगे तो ग्रीनहाउस गैसों की वजह से इनसे निकलने वाली राख और धूल के गुबार से निकले कण स्ट्रैटोस्फेयर (Stratosphere) तक पहुंच जाएंगे. ये पूरे वायुमंडल में छा जाएंगे और सूरज की रोशनी से मिलने वाली गर्मी को कम कर देंगे. यानी धरती का वायुमंडलीय तापमान तेजी से गिरेगा. जिससे धरती पर हिमयुग आने की भी आशंका है.

रटगर्स यूनिवर्सिटी के वॉल्कैनोलॉजिस्ट बेंजामिन ब्लैक कहते हैं कि अगर 2100 तक धरती का तापमान 6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है तो ट्रोपोस्फेयर की ऊंचाई 1.5 किलोमीटर बढ़ जाएगी. उधर, ज्वालामुखियों के विस्फोट से स्ट्रैटोस्फेयर में राख के कण फैल जाएंगे. ट्रोपोस्फेयर की ऊंचाई, ग्रीनहाउस गैसों की मदद से ये राख के कण तेजी से फैलेंगे. इतना ही अगर सूरज की रोशनी से मिलने वाली गर्मी को कम करके तापमान को 15 फीसदी गिराने की क्षमता रखते हैं. यह स्टडी नेचर कम्यूनिकेशंस में प्रकाशित हुई है.

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