जंग के मैदान में टैंक पर भारी पड़ रही वो मिसाइलें, आखिर रूस-यूक्रेन वॉर पर क्यों है भारतीय सेना की नजर

नई दिल्ली: यूक्रेन पर रूस के हमले को 46 दिन बीत चुके हैं लेकिन व्लादिमीर पुतिन को जीत की घोषणा करने का मौका अब तक नहीं मिला है। रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग पर भारतीय सेना की पैनी नजर है। दरअसल, रूस के टैंकों के खिलाफ यूक्रेन की ऐंटी-टैंक मिसाइलों को जबर्दस्त सफलता मिली है। अब भारतीय सेना इस जंग से मिले सबक को ध्यान में रखते हुए भविष्य के बैटल टैंक की डिजाइन तैयार करेगी। यूक्रेन-रूस संघर्ष में वॉर जोन से आ रही रिपोर्ट से पता चला है कि यूक्रेन की सेना ने रूस के टैंकों और दूसरे बख्तरबंद वाहनों की कमजोरी का फायदा उठाते हुए ऐंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों का धुआंधार इस्तेमाल किया है।

जंग का मैदान बने यूक्रेन के हर घटनाक्रम पर भारतीय सशस्त्र बलों के टॉप कमांडरों और अफसरों की नजर है क्योंकि वहां लड़ाई में इस्तेमाल हो रहे टैंक समेत कई जंगी साजोसामान भारत से मेल खाते हैं। वहां से मिल रहे इनपुट का गंभीरता से विश्लेषण किया जा रहा है और उससे मिली सीख का आगे बनाए जाने वाले बैटल टैंक में इस्तेमाल किया जाएगा। सरकारी सूत्रों ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया कि आने वाले वर्षों में भारतीय सेना को जो टैंक मिलेंगे, उसमें यूक्रेन-रूस युद्ध के इनपुट का इस्तेमाल किया जाएगा।

रूस की बख्तरबंद गाड़ियों का भारतीय सेना में व्यापक रूप से इस्तेमाल होता है, जिसमें टी-90, टी-72 और बीएमपी सीरीज के टैंक शामिल हैं। भारतीय सेना ने पहले इन टैंकों को रेगिस्तान और पाकिस्तान से लगते प्लेन बॉर्डर पर तैनात किया था लेकिन अब इसे चीन सीमा पर भी उतार दिया गया है। लद्दाख से लेकर सिक्किम तक बड़ी संख्या में ये टैंक भारत की सीमाओं की रक्षा में खड़े हैं।

46 दिन की लड़ाई में यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कई देश यूक्रेन को ऐंटी-टैंक, ऐंटी-एयरक्राफ्ट उपकरण जैसे Carl Gustaf ऐंटी टैंक रॉकेट लॉन्चर, NLAW और AT-4 दे रहे हैं। टैंक ऑपरेशंस की जानकारी रखने वाले अधिकारियों ने बताया कि टैंकों का डिजाइन तीन से चार दशक पुराना है जबकि ऐंटी-टैंक मिसाइलों और रॉकेट को मॉडर्न जरूरतों के हिसाब से डिजाइन किया गया है और ऐसे में मौजूदा हालात में वे हावी साबित हो रहे हैं।

अधिकारियों का कहना है कि अगले कुछ सालों में जो टैंक बनेंगे, उसमें भारतीय डिजाइनर आवश्यक बदलाव करने की कोशिश करेंगे।

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